पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१८३

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कार्य-कारण-शून्यता ? मानव की प्रयोगशाला से आयी यह ध्वनि आज क्यो है ऊहापोह तुम्हारी यह इतनी विन काज कार्य और कारण के पीछे पड़े हुए दिन-रात, षयो तुम क्षीण कर रहे हो यो अपने कोमल गात? जग है नित्य महैतुक, इसमें रख न युक्ति-प्रमाद । यहा नहीं मिलने का तुमको कोई पुस्ति-प्रसाद । यो कहते हो कि है तकमय सिरजन के व्यापार क्या है हेतु-वद्ध इस जग के नैसर्गिक व्यवहार नही बन्सु, है कहाँ तकयुत ये नैसर्गिक खेल ? जग में फैली कहाँ कार्य ओ' कारण की यह बेल? कार्य और कारण है केवल मन-हृय की विक्रान्ति । 'पू' और 'पश्चात्' 'पर'-'अपर',यह है हिंय की भ्रान्ति। 'ब' और 'जय' का काल विभाजन है नितान्तहीभ्रान्त, और, इसी कारण मानव-हिय हुआ नान्ति-आमान्त, 'तब'-'अब' का यह भेद न हो तो कहाँ हेतु का भाव ? कहाँ पाय-कारण का झपट ? नहा तक का चाय । इसी 'पर'-'अपर' के झूले में मनुज रहा है त । अत काय चारण का, हिय में, सटका है यह शूल, पह। पाषतालीम “याय है, यहाँ घुणादार न्याय, मत दिखाई दिया जगत् में हम हेतु-स्यवसाय, नहीं हेतु मलपता जग म, यो है हत्यामारा, यो मोतिर विमान कर रहा तयों गा उपहास । 5 दम चिपाधी जनम के