पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१८४

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जड विज्ञानी अपने कर में ले अणुवीक्षण सन्न, घोला जग में नहीं हेतु फा कोई शासन-सन्न । यहाँ कार्य-धारण है केवल दृग्गत स्थूल विकार, विद्युन्मय परमाणु - कणो मे नही हेतु-विस्तार। यह उत्प्लवन्त विद्युमणियो का यादृच्छिक है नित्य, लो, कर दिया अहेतुकता ने कारण-बाद अनित्य । है सबिकल्प सदा अण-सहति-भेदन का व्यापार अशु-स्फुरणकारी पदार्थ का है विचित्र व्यवहार, हेतुवाद की जडें हिलाकर यह भौतिक विज्ञान, मिला रहा है आज धूल मे तर्क युक्ति का मान! कहता है ये विद्युन्मणियाँ कण है। किन्तु तरग । कहता है ज्योतिष्किरणे है भौतिक, किन्तु अनग। कहता है यह घनीभूत जग है तरंग उत्ताल । किन्तु तक पाहता है मत यो फैलाओ भ्रम-जाल । कहता है विज्ञान नहीं है यह कोई भ्रम-जाल, है निसर्ग थी यह लीला ही युक्ति-हीन सब काल, जो दिक-काल कहे जाते हैं आदि अन्त से होन, वे भी हैं सोगान्त युक्त भौ' वे भी होगे क्षीण, युक्त-बाद तब वोला मेरे, है भाई विज्ञान, कही न काही तुम्हारे भीतर है भारी अज्ञान । अणु-सहति-भेदम-कारण को यदि न सके तुम पेस,- और पूर्ण हैतृकता को तुम यदि न सके हो देख,- तो क्यो नहते हो कि जगत् है हेतु-हीन व्यापार पों कहते हो कि है अकारण यह समस्त संसार' हम पिपपायी जनम के 18