पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२१५

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कय तक? जब तक हम अलग-अलग, अपने पिय से है चिलम बिलग, तब तक, जब तक ध्रुब गतिविहीन- है चरण, शिथिल डगमग डगमग जब तक न करे पिय हमें वरण तब तक मावेगे स्वन शन-मन । जव जब पिय सप्तपदी पूरी होगी, जन लुप्त त दूरी होगी, गलबहियां डालेंगे जब उनकी मजूरी होगी तव हम बन उनके नूपुर स्थन, गुजगे झन-सन झनन झनम' श्री भोश टोर, कानपुर २१ मार्च १९३० 1 यह है द्वापर, यह है द्वापर यह है द्वापर, यह है द्वापर, कलियुग इस कौन कहता है ? मह है दुश्चिन्ताओ का पर। यह है द्वापर, यह है द्वापर यहां गरजते है मशयमण, मुखरित है सन्देह भयकर, विनिकित्सा उग रही हृदन को, हुई जन गणो की मति सकर, टुटो अटल विनाम - सम्पदा, इटा नि श्रेषस पय- गचल प्रश्नालिया उभरी बरने ध्रुव का सतत निरादर, यह है द्वापर, यह है पर हम विषपायागनमक 1 ११०