पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२१४

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सोयी-सी प्रीति पुरानो वह - विस्मृत, अतीत नादानी यह छिन भर में ही उठ आती है कारती हिय पानी-पानी वह, ध्वनि है कि कान का विगति पालन? आये नूपुर के स्वन झन-झन । ये स्वर अमादि, ये स्वर अनन्त, यह कल निनाद निसर अनन्त, यह देश काल सीमान्त हीन, गुजन मन-हरण अनायवन्त । करते निकाल गति का सण्डन, आये नूपुर के स्वन झन झन 1 अपने प्रिय के ये पदाभरण,- अपने प्रिय के सुकुमार चरण,- अपने प्रिय की अटपटी चाल,- उगका यह मादक अभिव्यजन, है इन थवणो मा वशीकरण, - आये नूपुर के स्वन झन-सन अतस्तल में इक हूक उठी, पद रति यह अवश अचूक लुटो। दर्शन उत्सुकत्ता उमड पडी, निनिमिप बन गयी नयन पुटी। गूंजे नूपुर के स्पन जिस क्षण, जब आयी नूतन झन, सर । ! सन, वे चिर नवीन, चै चिर नूतन, वे सतत सनातन, सुपुरातन- न जाने कितने युग से वे,- करते आये है मन-मन्थन। है फितना दोष हृदय-धपा, पर तक गायेगे स्थन झन-झन ? दम विपसायी सनम के 148