पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२३८

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यह प्रवास-आयास धक्रित गात, सदलथ चरण, हिय, मन, प्राण उदास, अव न नवा नीको लगे, यह प्रयास - आयास । अब तो यो कछु लगत है, बैठि रहिय वा ठौर, जह लखि पिय को, नेह - धन, नाचि उ मन मोर । रिम - झिम बरम नेह - धन, नाचं मत्त मयूर, ऐसी रहनी रहहु मत, रहहु न पिय ते टूर। छोडहु देस - विदेस की यह पयटन असार, वहु पिय के चरण गहि, करह सुलोचन चार । विचरहु पिय को डगरिया, बसहु पिया के गाँव, पिय की ड्योढी बैठि के, रटहु पिया को नॉद । कद्रीय कारागार, बरेली ६ दिसम्बर १९४३ प्राप्ति मन होता है, प्रियतमे, मदुतलवो म आज, नैन ललक्ते हूँ बिछा, जब तुम चलो स-लाज । मम गतिमय अस्तित्व को तुम स्थिरता हो प्राण, वर दो, अरुझे चपलता तब पद मे अनजान । 3 हम पिपाया जनमक