पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२३९

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मत निरखो मुडाको भरे नत नयनो मे नौर, हहरा उठता है हृदय देख रावरी पोर। पाकर जीवन मे तुम्हे धन्य हुए मम भाग, शाश्वत रहो अखण्ड नित मेरे मधुर सुहाग । नित्य ढूँढता मैं फिरा निज प्रियतम सायास, इतने दिन उपरात अब मिटी पास की प्यास । क्या तुम यो ही आ गये अनायास हिय वीच ' युग - युग से हूँ में रहा कर्म - येल यह सीच । औचित्यानौचित्य का सशय है बलवाद पर, प्रिय की उपलब्धि तो है औचित्य महान् । मैं न करूंगा आज प्रिम, पाप - पुण्य का भाव, सशय में होगा, कहो, कैसे नेह - निभाव? विहँसो झूला झूल प्रिय, मम रसाल की डाल, कूलो कोकिल सी तनिक गूजे सब दिक् - काल । भर दो इस अस्तित्व में मस्ती की धुन एक, दीवाना यन नेह का भूलू ज्ञान विवेक । पूण महा मानव वनें, लगे नेह सोपान, जल - पल - नम विचर राहज, चढ अनुराग विमान । प्राण, तुम्हारे चरण मे, विनती वारम्बार, पायिवता हा नष्ट यह सन्द्रियता हो क्षार। • लालसा भी बने घोर, गहर, गम्भीर, प्यार अतीन्द्रिय हो, सजनि, आलिंगन अगरीर । पररा २१४ हम विषपाया जनमक