पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२४४

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अरण प्रात, कारी निशा, स्फटिक दुपहरी-पीर, सलग लोचनन में दुरे राम एक संग, री वीर। डिस्ट्रिक्ट जैस, गाजीपुर १० दिराम्बर १९० अनुरोध झोनी चादर ओद्धि घी मत सोयहु गुफुमारि, अंग-रंग छलषयी जात है रजित है दिमि चारि। भाखिन ते जनि वोल, मजनि, अबोले बोल, भीन-अनो चुभि जात है हियहि टटोल टटोल । गो बगिया मे दुरि परी कबहूँ तो नुवुगारि, डोलि रह्यो व्याकुल पवन इतै उसास जारि । हारि गयी लतिकान की कली निमन्त्रण देत, पुहप पक्डेि विछि गये, अली, पराग समेत अब तो सूनी कुज पै करहु सुपा की कोर, छिटक चादनी-सी खिलहु, है के यात्म विभार। राधन युज की गलिन में आयहु, खेलहु रोल, इन सूने विश्वान प, मजनि, चहाबहु वेल । याख मिचौनी मिस दुरद उनकि उनि द्रुग-मोट, कछु काकरिया सी चुगे, दह मैन की नोट । इम निपपायी सनम २१९