पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मैरी झीनी चदरिया रंगी तिहारे रग, म्यामिनि, इत उत त्रुवत है देपर नवल उमग । या विराग-अनुराग गो भाग पुलि गये, वीर, उनको ती सगो मिटे हम-गे मस्त फकीर । धूनी तपी, न चीमटा सगयो एलो वार, तक फकीरी को, सजनि, आयो भतुल बहार। वस्त्रन प रंग ना चढ्यो तेरो रंग अनमोल, हिय राच्यो, मन रंगि गयो, राचे लोचन लोल। हम है मस्त पापीर ये जिन्हे और ना काम, गादी गहरी छानि के रट्यो कर तुव नाम । रात अंधेरे पास को, दीपक होन पुटौर, आय सजीवह दीपरा, हियरा भयो अधीर । रंन दिना बैठयो रहे द्वार तिहारे जाय, भोरे मनुवा को करी जय ही कौन उपाय उचटि-उचटि चलिजात चित मा आंगन की ओर, जहाँ हुलि रखा है, सजनि, तुव अचल को छोर । नाबहै तो निज दुगन ते कहहु आहू, इत आहु, तुम तो सन्तत कहत ही दूर जाहु, उत जाहु । तुम्हरे लोचन-यमल 4 मो मन अलि अनु खत, तुम टारत, मटरात वह बार-बार आसक्त । कबहुँक हैसि मुसिकात हो, कबहुँ करत ही क्रोध, यह कैसी जु बदा-यी। यह बैंसो अवरोध? डिटिकट जैल, गाडोपुर १८ दसम्बर १९३० २२० इम विषपाथी जनमक