पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२६६

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तीर कमान प्रिय, धनुधर तुम चतुर, तव लक्ष्य-वेधक वाण, खटकता है यह तुम्हारा मूक शर- सन्धान, पलक प्रत्यचा, सुभृकुटी लचक लोल फमान, सैन - शर हैं भाव - रस - विप बुझे, है रभयान, नयन - वाणो से सदा करते रहो मिपमाण, बरा यही है साथ हिय की, बस यही बरमान । एक दिन कर दो कृपा इतनी, अहो गुणवार, घूम लेने दो हमे निज सुघड तौर - कमान । पीवकर आकर्ण प्रत्यचा, धनुप को तान,- मो बुला लो पारा, दे दो नयन -चुम्बन - दान, प्यार मे यह खोज्ञ - जेसो चीज? इतना मान? प्रिंस, दिखा दो चाँदनी - सी वह मृदुल मुसकान । टिस्ट्रिल जेल, फैजाबार २२ अगस्त १९३३ २४१ इम विषपायो जनम के ३१