पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रश्न मिट जाने दो विस्मत-स्वर वो वह धुंधली-सी रेस, क्या करते हो याद विगत रत जीवन का अविवेक ? अहो हो गया बहुत, भूल जाओगे सारे खेल, बचे मुचे जीवन को अर क्यो करते हो मेल' उत्तर अरे, विराग सिखाने वाले इचर जरा तू देख, कुछ क्षण को तू यही ठोड दे अपना ज्ञान विवेक । देख जमड आये है मेधा, सनसन बह वयार, गोनी माटो को सुगन्ध करने आयी है प्यार, बूँद शीतलता लायी है, अपने मग बटोर, जर चेतन हुलसे है, नाच रहे जगल में भोर, ऐसे समय, यता दे, क्यो न पगाऊँ विस्मृत-राग? अरसिक, मुदो शिक्षाने आया कैसे आज विराग? अरे, कमक हिय भै, लर की मरमृति हुई विलीन, याद कर रहा हूँ विस्मृत स्वर इसीलिए मैं दीन । व्यर्थ गुनगुनाओगे अपनी यह टूटी-मो तान' उत्तर इसीलिए न, कि मेरे प्रिय को नही स्वरो का ध्यान, इससे क्या होता है रहे गनीमत मेरा राग, जाकर, रो दूंगा, - जागेगे मेरे फूटे भाग, गायन उनको नहीं सुहाता, उन्ह रदन रो प्रेम, मेरे प्रिय की यह है एक अदा यह उनका नेग। उनफे आगन में रहती रोनेवाली पी भीड, मैं भी उसमें मिल जाऊँगा हो फरके गत पीड। प्रश्न तो फिर, सीधे-सीधे रोते हो गयो नही अधीर ? गाने का आयोजन बयो करते हो हिय को चौर? उत्तर ' हे अज्ञानी पृच्छया, तुम क्या जानो यह सब बात? तुम्ह नया पता नायन का कैसा होता प्रतिधात । हम विषपापी जनमक प्रश्न २१०