पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२८४

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हे घुन, चुन-चुन कर तू खाना इस अस्तित्व-शून्य का दाना होपे नाश, न रहने पाये- अक्षत-हिय का भरा खजाना वस आवरण मात्र रह जाये इतना रहे विवेक । अरे सुन, जीवन के धुन एक जीवन कर रन पूण तू कर निदयता-भाव दूर न तू दया-मया को दिये तिलाजलि मन का कण कर चूण-घूण तू निंदय सा, निर्मम सा निष्ठुर तू अपने को लेख । अरे ओ जीवन के धुन एक 1 फागुन अरे ओ निरगुन फागुन मासा मेरे कारागृह के शून्म अजिर मे मत कर वास । अरे ओ निरगुन फागुन मारा । यहाँ राग, रस, रग कहा है। झाजन, मदिर मृग यहाँ है? अरे चतुर्दिक पल रही यह मीत भावना जहा तहा है- इम कुदेवा मे मत आ तू रसवदा हंसता सोल्लास, अरे ओ भोले फागुन मास। हम विपपायी जनमक १५॥