पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९२

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का ऋन्दन- जरा विकम्पित पाँव थाम दो, मेरे मालिक, फिसल रहा है, निर्मल शोतल जल लेने को आज अचानक इधर वहा हूँ। देश-देश के सुरस छत्रीले, पनघट से भर दौर ले गये, अपनी फुलपारी को मीचा, जग को मधुरा पोर दे गये। कैसे-कैमे पुष्प सिले हैं- कि सब विश्व का प्रागण फूला, दुखित हृदय उनको देख, आप अपने को भूला । हे उदार दानी, इस पनघट के- मघु रस का पान कराओ, मेरे सूखे घट को अब वा जरा देर को स-रस बनाओ। साली घडा बिचारा, गरए- बोल बोलता रहा सदा यह, अब को इसका गला फंसा है, ख लो लाज बांह मेरी गह। मुझे न कहना-अरे ठहर जा, बडे बडे है यहां परोक्षक, मै भी तो बरसी का मारा- हूँ छोटा सा एक प्रतीक्षक। पनघट से मधु भर लेने दो, मेरी विनय गुनो भुचिशाधक, अपनी प्यारी हरु को मेरे गग को- करो न तुम प्रतिरोधन। इम विपायी अनस क २६०