पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९१

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वन की बीहडतारी जो मै शरण गया, तो देसा आया मेरा यह मरण नया । ठेला उसके, चरणो से अपने को दूर, पर मन मे वह चरणो का आभरण गया। इधर-उधर छायी है वह लज्जित-सी मौन ? लता-पत्र से झांक रही वह देवो कौन? लजयन्ती हो जाओ अवगुण्ठन को ओट, निठुर पहाड़ी पर आ-आ कर करो न चोट । घोट-पोट कर है मन का महार किया, छुप जाओ, वरना हो जायेगा विस्फोट । नेह सुघट छलकेगा सुन ओ सूरत मौन ? हंस हंस लोग कहेगे यह है पागल कौन ? तुम्हारा पनघट एक बार अपने पनघटगे- चन आने दो, चन आने दो, इसी बहाने मेरे जीवन- का बुखार कुछ बढ़ जाने दो। इस पनघट की गागरिमो की- लग-पन सुनवर खिन आया हूँ। अवल नौर का मर्म समझने- को यह उत्सुक पर लाया है। २६९ इस विषपापा सनम