पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९४

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किन्तु प्रेम के पत्र रूप से मत आओ, हूँ-क्षीण | मेरा तेल सुखाने को आ जाओ तुग वाती हो। जल उठने दो जीवन दीपक भर से होऊ धन्य । उसको लौ लहराने दो, जैसे तुम लहराती हो। मेरी निष्ठुर प्रतिमा उसको देख कह उठे धन्य । मानो भग्न दुग पर फटी ध्वजा फहराती हो। प्रश्नोत्तर प्रथम मन ही मन लड्डू मत फोडो, तो मुझे बताओ, पयो वैठे हो? अरे जरा तो, हिय का हाल जवाओ। किस जादू की लकडी ने, कर दिया तुम्हे दीवाना ? बोलो तो, यह कौन खेल, रच रक्या है मनमाना? धारे मौन, डुलाकर ग्रीवा, आज मुझे सताजी, मन ही मन लड्डू मत फोडो, जरा बताओ? द्वितीय या कहते हो? प्रथम पही । इभ विषपामी गनग क न २६०