पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३००

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मन - अम्बर के तुम ओर - छोर, चिन्ता की तुम घन-घटा धोर, तुम गत प्रकाश की किरण कोर, तुम मेरी आकुलत्ता अथोर, तुम विधिल पराजित प्रणयवाद, ओ तुम मेरे हृदयोन्माद । तुम जान-रज्जु के टूकन्ट्रक, तुम हिय उच्छृखलता अचूक, अनियन्त्रण को तुम गहन हूक, तुम अमित चित्त को भूल चूक, तुम निज स्वरूप विस्मृति अगाध, ओ तुम मेरे हृदयोन्माद । निष्ठुरता के तुम फल कराल, अस्थिरता की अटपटी चार तुम जागृति के सुक्ष स्वप्नजाल, तुम स्वप्न जागरण सन्धिकाल, तुम विकृत कल्पना-गति अगाध, ओ तुम मेरे हृदयो माद । तुम चिर कोमलता पक्रिान्त, तुम मन करपना थक्ति, भात, तुम हिय-प्रवाह - उगम अशान्त, तुम बाछा, विफल, सिद्ध, नान्त, तुम मगन लगन पो तृपित साथ, ओ तुम मेरे हृदयो माद 1 फल नुचले हिय की तुम कथा दोप, दुर्दैव - कीप ने विशेप, तुम सोमोरलपित चरम क्लेश, तुम पुण्य तुम निया शून्य सशापसाद, ओ तुम मेर हृदयोन्माद । हम विषपाया जनम प्रेम साधना २७