पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३०५

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नारिया उमर ही पहनती कर एहराम मा हा हूँ। अरे ग यहा पूर है. प्रिय, मेरे भुजदय धरी, भर-र प्यारे योगा अत्र बदरी।। होकर पनाएर मोम ऐगा मूग अपने यो, गय ममम या हूँ मैं जीवन गे गोरे गपने यो, अपनेपन को बाधा, एलिया मा यो भौली मम्मति में, प्पार पराया देगा मो, अपनी हो मापन गति मे, गन या भ्रम है - या किरात्य यह ! पागलपन या यठिन मुत्य मह' मुपे उयारी परी पा युछ, मरपना नृत्य यह ब्रम विधम - सम्भम बन्धन से अब तो कुछ स्वच्छद करो, भर - भर प्याले यौवन - मदिरा ये देना अब बन्द करोगे > थमे जय 1 1 रह - रह टोस उठे हैं, अग अग में नव विस्फुरण मंचा, नस • नस पसक रही है तेरे भादक रस ने रग रया लचा - लचाकर जीवन टहनी, श्यास यथार डोलती है, कभी इघर को, कभी उघर यो, गति के वन्य खोलती है यो हो तर हिस्ता - डुलता है, प्रकट कर रहा भाकुलता है। दे जडता के बन्धन रो- यह पादप कवतक खुलता है चैतन्य, जाड्यता, जडता में अब इमको निवन्ध परी, भर - भर प्याले यौवन - मदिरा के देना अब बद करो। 1 ६50 हम विपणावी जनम के