पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३०७

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जीवन रस का मदिर त्रास यह, मचा रहा है घोर राम यह, सिर चक्कर खा रहा भवानक, हुआ बुद्धि का राह पास मह, जीवन-पथ में पड़ा अंधेरा अपनी ज्योति अमन्द करो, भर-भर प्याले यौवन-मदिरा के देना अब बन्द करी। . ? 1 1 . आज अधिक गहरे में हूँ मै तुमने तो को कीडा-मात्र, पर मेरे चहुँ और पड़े हैं, प्रिय, देयो सालो मधुपाल गा। शिविल हैं, पग उममग पडते है, आँसें अपती है, वचनो को उपचारित करते, अपर रेस यह कंपती है फामा मुझको नया-नया था, जरा दिखाई नहीं दया क्यो? जन हंस Jछ रहे हो निदेय- मघवा इतना घटा गया पा जोद्धे हाय पिनय करता, मेरे हित का निस्सन्दन, रो, भर-भर प्याले यौचन मदिग नै देना जर चन्द्र परो॥ श्री मुप मे पहने जाते हो नि यह युगै शी आदत है, पर, आँगो गे पहने ही मि पिये जा, या हो आपत्त । ये TT पात्र हाथ गे मादयता मो योगो वष्टि जाऊँ नमार गारे गदि तुमने गोरी गोरी " [ प आपस में पर, र योग, बरे, दॉग मुझे रोग पनि गावाम पर मगर, गा" m मे त मेरे 971, . भाभा होगा-मणि देहा rarrin 1 En layan