पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३१

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सभी मस्त है अपनी धुनमे, किसको किसका ध्यान यहाँ ? एक तुम्ही हो जो कि व्यय मे यो चिर चिन्ता क्षीण हुए 1 2 अतल-वितल पाताल सदृश है जीवन कहो, कहां गहरा मत झाको इतने गहरे से। वह तो इक बुद्बुद ठहरा। खूब जानते हैं, न करोगे तुम विश्वास रच हम पर, पर, तुम अपनी दशा निहारो, देवो तो अपना चेहरा तुमने सदा झाक झुक देखी इम जीवन की गहराई, तुमने सदा अतल की ऊँनी ये लहरे है लहरायो, हमने यहा किनारे खेलो। पर तुम गहरे पैठ चले । लो, अव श्रवणो मे अणव की भैरव गूंज घहर आयी। नेत्रीय कारागार, परेली ७ नवम्बर १९४३ राति एकाकीपन मिभुज म्प यक पनि चलो यह इस विस्तृत नीले अम्बर में, गानो त्रिगुण-त्पना पैठो, निर चितन के महदन्तर में, दुष्प घपर गभरर-पग्मो पर विम्बित नील गगन को झॉर्ड, rम रिपपायी जनम में