पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३३६

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अंधा हुआ और उड़ रहो मम मूरखता मेरे मम्गति - गौरभ मृरत और मृपता का यो है alal मा, पया ही मर जुड़ गया है यह डा. जजीरसा नाता-मा मेरे पागचा ही गया है यहाँ मिया मम्मरणो ? गंज रहे है अब भी पनपन - बमाण आभरणो के, झूल रही हैं स्मरण गोम म अब तक ये भुज घरलरिया, महत रही है अये, भाज तथा वे अधर-अकुट मलरियाँ, रहने दो उनकी मस्मृतिया वडी विष्ट, तुफानी हैं, उनके भी अध-कहे जमले गहरे हैं, जू मानी यो गणेश युटीर, रानपुर १८ मवम्बर १९३८ स्वन हम निपपायी जनमक