पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३३५

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ओमध्ये, मगे गत पहियो प्रग मा पुज, सनी, म्वेद-वेदनाओ से सिंचित हैं मग म्मरण निपुज, ससी, मेरा गत पथ पटा विस्ट, विस्तृत है गाया 'त' गो, याद दिलाये पयों जाती हो, अये प्रपुर, उस सब यो धूप छह मोटा करती है मेर जीवन के पथ में, ज्यो-त्यों करते कर पाया हूँ इतना पथ हिय मथ-मथ में, पया ही अजा तबीयत पायी इस नवीन मस्ताने ने, कि वस सुटाया सरबरा बरबस इस कवि सिटी सयाने ने, अरी धरा ही क्या है एसा मेरे उस गत जीवन मे,- जिसे देखने को कहती हो सन्ध्ये, इस नीरव क्षण म ओ सस्मृति-प्रणोदिवे, है उन बांझ वडा, वैसे वहन कर उसबो इन राान्ध्य क्षणों में सडा-पडा? वे मूरते लजीलो आयी है इस मन नभ म, 2 सस्मरणो वा ३१० हम विषपाया सनम