पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३४१

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हिय-रार मेरी भ्रमित है जिन्नान-मी यह रस-भरी हिय-रार मेरी, युपित स्वागत में पर उड चली मनुहार मेरी। अवल गानस नील नभ में एक दिन कुछ भाव कुछ हुआ श्रम-सा, अचानय आ गया पुछ आँख मधन घा-गण घुमट घहरे, प्राणदाहक पास यह हुआ अनुभव कि आयी सबल ऋतु इस बार मेरी। पर, अचिर यो मेघ-माला, यह तिरोहित हो गई आज फिर से क्षितिज-रेपा ताप लाहित हो गये चिज्जु-रेसा कौन जाने वह विघर को खो गयी उठ चली आची, हुई है वह मधुरिमा क्षार मेरी । हास ठिटया, गैप्य-नेया सोचते इस व्योम-पय प माघ मेघो के चमकते, पहले, गतिवान् रथ पर मुदित आरोहित हुए तुम आ गये थे, ललन मन वम तभी पहले - पहल, उस दिन, हुई थी हार मेरी । दबास औ' नि यास का यह बुरा समोरण-तुरन च ले चला मुझको जहा ये अर्ध मीलित त दृग विन्तु तुम तो डाल वैठे थे मुखाम्बुज पर पटार लो, निराश्रित हो गयी है मत लगन सुकुमार मेरी । रस-भरी हिव-रार मे हम विषपायी जनम