पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३४२

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1 आओ नत्र दीप सध्या के मामल दाण में, शिखा सी भाभी, मेरे इस धूमिल नभ मे, कुछ कुकुम छिटका जाओ। प्रथमोदित शुभ तारे - सो हुलसो इस नभ-मण्डल म, ईमन के कम्पित स्वर-सी दिलसो मम मन चल में। मेरी अति नीरवता में- गगा - लहरी-सी कल कल करतो हुल आओ, कुछ वहतो, मुउ हरी सी। आआ लपझप करती लहराती- दृढ बँधी नेह के धागे, नर अरुण चग सी उडती- तुम आओ मेरे आगे। दाये यायें लहरायो- मैं , ठुमकी तुम हमको, हाँ ढोल कभी दे हूँ मैं- फिर कभी खीच है, तुमको। यां मेरी साक्ष, राबेरा- जीवन का फिर बन जाये, जीवन-मन्ध्या की लाली- बन पा छन-छन आवे। हम दिपपा जनम के lents