पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३५७

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कौन? पूछते हो कि कौन है- इस तृष्णा-मद का दाता? कौन खेलता है यो अहरह? कौन आप या ललचाता? विसने प्रमयनशील भरी है- प्रवल प्रेरणा प्राणो में? कहो यौन वह है ? इतना विष- जिसको शर सन्धानो में सुलझाये भी नही सुलझती, ऐसी गढ़ फिर भी हिय की लगन विचारी पथ मे खड़ी अबोली है। वसन्त कारागृह मे भी आ पहुंचा, यह ऊयमी वसत 'समीर', मॅडरने लग गयी यहा भी, सहमा मह पतझड की पीर, हिय टलनी करने को पूलो- सरसो की पारी मृदुल योपले पीडा भरने- आयी है न्यारी ग्यागे, नयारी ५३२ दम विपाया जनम ki