पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३६६

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1 आ जाओ, हा हा था जागो इन जंगलो के पास जरा, जरा दिखा दो स्वण भरे युग दृग् को नबल छटा अपरा, खड़ी भीजतो रहो तनिक तो इस कारा के आंगन में, रच देख लूं जल - कपा - मण्डित उत्फुल्लित जलजानन में, काल कोठरी के जंगलो से मुझको हाथ वहाके दो, सजनि, क्लाये ले लेने दो, हियरा जरा चढाने दो? तुम भीजो, मैं सीज पसीजूं, तुम मुसक्याओ में रोक, तुम आँसू पोछो, मे इनसे कोमल युगल चरण धोऊ। अर्घ्य - ग्रहण करती तुम भरती नेह हिये, हरती पोडा, नत - मस्तक 'नवीन' के कुन्तल से करती कोमल क्रोडा लोचन से कुछ-कुछ टपकाती गोल-गोल बूंदें पारी- आ जाओ, लहरा दो मेरी सुघड साधना की यारी। दिस्ट्रिक्ट जेल, पंगाबाद १९१२ ओ मुरली दा ओ मुरली वार, मोटीन , आगो छा जानो इस दे, लं, न्द्रन्ट वा बाजी क्य रो पड़ी मदतौल हरे चूपभानुना ही हैं कि rompt rss