पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७५

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- लहरी, 1 चरण - नूपुरो से उठती है कम्पित - सी स्वर - मानो लोहित दीप - शिखा कुछ कैपती हो, कुछ व्हरी, चरणो के तलुआ को लजिरत - सौ मेहदी की लाली- भरी हुई है, सजनि तुम्हारी रुनझुन मे मतवाली, पोजनियाँ, किकिणियाँ, शाशे गूंज रही है याले । सरसा रहे वेदना हिय मे ये नूपुर धनवाले। टिस्ट्रिक्ट अल, गाजीपुर १५ जनवरी १९३१ कुण्डल केवावृत युग कर्णो मै- यया छटा रुपहरी छिटकी ? इस का - निशीथ मे माकर यो प्रखर दुपहरी ठिठको । सारो मिस क्या अंधियारी, यह घगक रही है क्षणदा' अथवा यह विहंस रही है? घन तिमिर विजयिनी रणदा' हौरण ताटंग उलौने- युग श्रवणो मै एट हूँ, मानो दिमण्डल • पथ दो इन्द्रधनुष म पटर है। १. J