पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आँखो के पलडी मे तुलते है मोतो दिन - रात यहाँ, क्या जाने किसके कहने से होता बिन्दु - निपात यहाँ ? जब से आख संभाली तब से हुई अनोखी बात यहाँ दोसा सदा गगन धुंधला सा मुझको साय प्रात यहाँ, रात यहा, मध्याह्न यहाँ, है प्रात यहाँ इन नैनो मे,- दाथन, जागरण नवीत्थान है इन नैनो की सैनो मे । डिस्ट्रिपड जेल, गाजीपुर १४ जनवरी १९३१ रुन-भून क्या क्या भरा हुआ है नूपुर की इस रनुक-शुनुका म? सखि, बतला दो वया भर लायी हो इस नुक-युनुस म? इन शाशो की सन खन में यह क्या वनि सुन पडतो है ? थोलो, मुई सुई-सी यह मृदु रुन झुन क्यो गडती है। गत डोली भांगनियाँ म यो सनफाली पाजनियाँ, कभी कभी तो माना वरी बात मेरी, हा, रनियाँ । ? पाजनिया में मिस हिय - अति को कोसा करती हो, सहज चाल में मिस जीवन में क्या पोडा भरती हो कामल चरणो वे आभूपण म योलो तो, रातो, पिसने भर दो पोडा है यह मौन वेदना दानी ? अमल कमल सम पद-वियानो की वोमल सकार- हिप मे पो उनका देती है पोडा की टकार? हम विपपाया जनम