पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७७

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था लम्बे सधन कुन्तलो का सखि,- तुमने बांधा कोमल पाणि युगल में ली थी स्वनित मुरलिका रस - गूदा, मुकुमारी चूडियो तुम्हारी, कर-ककण बन आयी घो, अली, सुना है उस दिन श्यामल जल-धन बन तुम छायो थी। कम्गित जल को परछाई -सी,- औचक चपला चलिता सी,- रग मच पर तुम आयी थी,- वृष्ण रूप घर ललिता-मो, मोर मुकुट थिरकातो थी वह,- सलज चाल को ठुमक भली, वजा रही थी किकिणिमा वह चरण-न्यस्ता शुगर, अली, मोहित हुई दशिकाएं सब जगमग हुई गायशाला, युछ जादू कर गया, सजनि, यह प तुम्हारा मतवाला। एक बार वैसे ही धारे- मोर पम या मुकुट नया,- कुछ लज्जित-गोयुछ सिलती-मी- विटा टिठक एक पार नह दरम दिया गो, जिमरी देननी है परता, ममी-महेली मन मे जिगनी- परतौर तप भरता, मेरे हित मे मा यमो ग 1 R में तुम, मुगु, गारी यनी, नटेयर मेो हिप म मरमो म भए । आनो पपया, a fra ***