पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३७८

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प्रकटो, श्याम बनो, अभिराम बनो, अविराम करो हिय में क्रीडा, परदे को इस ओर, सजनि, तुम, निज प्रीडा, मुरली लिये पपागे, हिय मे मृदु म्बर को पीडा भर दो, मेरे सूने वृन्दावन में- रास-कोडा कर दो, जूटा था, मयूर-मुकुट, कर मुरलो, हा क्या छवि बाँको । कृपा म्प धारिणि स्वामिनि, अब दिखला दो अपनी झाको । डिस्ट्रिक्ट जेल, गाजीपुर १२ जनवरी १९३१ आज मॉग बोलो, किसने मांग भरी यह, सनि, तुम्हारी सुवुमारो' इन वालो के ऐन बीच यह - दीप शिमा- सी मृदुला, री, सुनते हैं कि दीप फालो के आगे नही जला करता, सुनते है नागो के सम्मुख- कोई दोष नहीं रंच यता दो किंगने लो यह जान लगायी है पारी बोलो किमने माग भरी यह मनि, सुम्हारी मुवुमागे? गम विषपायी जनम के धरता, ३१६ ४५