पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३९७

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वेणी असे ओ उत्कण्ठित सुकुमारि,- जरा मुलझा लो उलझे वाल। ये काले लावे भवराले, अलि, ये व नाज के पाले, बिखर रहे है ये मतयाले, , मुन्दरि, कर दो इन्हे निहाल-जरा मुलझा लो उलो बाल । तन्तु नाम के विरल जाल से, लोचन कण की तरल माल से, वायु विडोलित कमल-नाल से, झूम रहे हैं बाल विशाल - जरा सुलझा लो उलझे थाल । कर मे ले लो कधी पेनी, आज गूंय लो सुन्दार, वेणी, यहां बहा दो श्याम निवेगो रूठने दो तरग उत्ताल-जरा सुलझा लो उलझे वाल। चूमशिखा-सी हिल डुलती है, निशि-तम से मिलती-जुलती है, सजनि, लर्ट रह-रह खुलती है, कैसा इनका हाल विहाल - जरा सुरक्षा लो उलझे बाल । गौर बदन पर फहराते हैं, युग पोल पर लहराते हैं, श्यास जलद से पहराते हैं, बाल हैक मेघी को माल ? जरा मुरक्षा तो उलने वाल ३६० हम विषपायी जनग के I