पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३९९

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एकाधिपत्य देखो तो 'नवीन' है कैसा शूल तुम्हारी पसली गे' कौन करकराहट भर लाये तुम नैनो की तसली में? वह झुंझलाहट सखे, तुम्हारी, यह अनमना भाय मन का, साफ कह रहा है कि लगी है जग गले की हैसली में । बड़े शौक से तो गले में डाले तुग धूमो हो, जी, नहीं समझ पाये 7 मह तो है लौह खण्ड, ऐ मनमौजी, इन वनम्वनती लोह वला यी पडियो को गिन गिन के आज सुस्त - से याद कर रहे तुम अपने किन-किन दो जी? मन मे जो खुट - स्फुट होती है, यह क्या है, कुछ बोलो तो? जरा संभल कर अपने मन के पलडे पर कुछ सोलो तो, नेह - हाट मे फैल रही है नित एकाधिकार निता, क्या तुम भी फंस गये इसी मे अपना हृदय टटोलो तो। देस तौक तो यह करिमा तुम याद करो हो इन • इन को, जिनके शरण गुण - बन्धा का पाठ मिला तुम निरगुन को, आज तुम्हारे रहा रहै ? वे सभी पराये खूब हुए, फिर एकाधिपत्य के पीछे और अधिक क्यो हो ठुमयो। सुम भी यया अनुभव परते हो, अरे बाह रादाह । तुम तो बडे मन्त गौरा हो, तुमको क्या परयाह सांग? तुमने दिल देना गोया है, यह सेना पर से गीखा हटी । यहाँ जग में मया रखना युध लेने की चार मधे? गम पिपापी ननम के