पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जानू हूँ एकाधिकार तो दिल का एक तकाजा है, प्रेम • पन्थ पर नित चलने का यह भी इक खमियाजा है, किन्नु पूर्ण अधिकार तुम्हारा यदि उनको अस्वीकृत हो, तो फिर युपके-चुपके सह लो हृदय-धाव जो नाजा है। करने को खिलवाट यहा पर माये है कंमे कैसे, खूब याद है उनकी सारी अदा, और वे थे जैसे, ठिन-भर करके चुहल रमोली बिदा हुए दिलदार सभी, अब तो केवल मन समझाना यहा रहा जैसे-तैसे । ? कृपाकोर गया मेरे मालिक रीशे है, सचमुच मेरी रचना पे? नाच उठी या मा कवित्व की- कडियां उनकी रसना ? आज पूछते है वे मेरी कविता - कोक्लि-कृक कहा कहते है कि अजी, रख दो तुम अपना यि दाटूव यहाँ आरों चार हुई, पह अटपट सदेसा आया प्याग दिखला दा नवोन तुम अपना हिय - सम्पुट न्यारा - न्यारा। हम ग्यिधाया शवम