पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४११

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उस पार एष वार आर हम दोनो चलो चले उस पार, ससो, जहाँ चह रही हो सनेह फे पिमल नौर फी धार, सती, प्रलो, चलें, उस देश, जहाँ हो छिटका मजुल प्यार, सली, जहाँ रापुचकार हो जाते हो दो-दा लोचन गार, सम्मो, जहाँ पुज की गलियों में हो मिलते दो दिलदार, ससी, चलो चलें उस देश, जहाँ हो छिटका मजुल प्यार, सखी । लोक लाज सकुने बेटी हो जहाँ द्रुगो के झुरमुट मे, जहाँ नेह की चाह खिल रही ही कलियो के सम्पुट मे, अधे नियमो की निर्मम यह क्षमता सुप्त जहा होती, गतानुगति के अन्धकार को छामा लुप्त जहाँ होती, सुन पळतो हो जहा शृखला खण्डन की झनकार, सखी, चलो चलें उस देश, जहा हो छिटवा मजुल प्यार, ससी। जहाँ नया आसमा छयीला नौला चंदुआ साने हो, नये नाद सूरज की आभा गहा नया रन ठाने हो, नयी जमीन, नये यादल, ये नय तारे, दिक्शूल नये, नये शकुन, अपशकुन नये, हा जहा सिलें नित फूल नये । जहाँ हुलसती घर आती हो हिरदे की मनुहार सखी, चली, चलें उस देश, जहा हो छिटका गजुल प्यार सखो। रुम विषपायो अनमक ३८२