पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४१०

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ओ सजनी, अब तो आ पहुँचो मदन-दहन को यह वेला, दीख पडे है अब उखडा-सा केलि कुनुहल का मेला, उजड चला है प्रेम - प्राण का हाट, वाट सूनो-सी है, रहने दो एकाकी मुझको, हूँ एकोह अलबेला । यो ही, इस स्ने जीवन मे संग मिला है कभी कभी, किन्तु अनिर हो रहे हृदय के मेरे ग्राहक बग सभी, कुछ क्रीडा-सी करते आये, कुछ शरमाये, कुछ शिवाके, एक मधुर सोदा तो, देखो, टूट चुका है अभी-अभी । कुछ ऐसा हो-सा विधान है, मेरे इस लय जीवन का, कि वस नही मिलने कार मुझको निर सपो मेरे मन का, तुम हो । ओ भोली, पगली हो यधुर मेरा पन्य वडा, बड़ा कठिन है, सजनि, निभाना विमो मस्त प्रेमी जन का । यह टगिनी बाशा यौवन यी, यह विपादमय स्फूर्ति निरी, मदिर चाह यह, विकट प्यास यह, यह सन्तोष-अपूति निरी, ये सर बना चुकी हैं, मेरा जीवन एक तमाशा-सा, देश चुका हूँ मैं बहुतेरी शून्य मृत्तिका - मूर्ति निरी। जर तो रच संभल जाने दो, इतना यौवन बीत चुका, एक बार तो यह ऐने दा, कि मैं स्वय को जीत चुका, अब शटवे पर सटके मत दो, तनिा रज्जु टोली कर दो, ग्रीव युया गया है यह मेरी, यह गम्तक भी, अहो, झुका । हाथ जोडता हूँ, न बहाओ यो लोचन - मुस्ता पारा, जोवन - पथ मे योच मचेगी, फिममा मैं बेनारा, मेरे ऊँचे, नीचे, संकरे पय नो पगिल तुम न वगे, योच और क्यों पहले से ही है जोवन - पय धियारा । . ..हम पिपपापा जनम