पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४२३

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दुराओ। विदिया की परछाई का- नैनो मे अवम उतारे- कब से बैठा हूँ रानी, प्रतिविम्ब हिये में घारे, मत जाओ ये मुंह फेरे, अब यो आंखें न चुराओ, विन्दा विलसित मुख प्यारा, यूंघट पट मे न कितने भावो को मथके, सिन्दूर बनाया तुमने, अलि बलि कितनी ले ली है, बोलो तो इस कुकुम ने, सन्ध्या पो सबाल अणिमा- ऊपा की सारी लाली- हो सार स्प बन आयी-- यह एक बूंद मतवालो। मेरी बेदना व्यथा को- रजित आखत आलू मे धुल - धुल विदिया बन गयो सयानी। कहानी, रानी, हम पिपगायी जनमक