पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४२४

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निद्रोस्थित नेह जिस दिन उट्टा सहन नेह का - अलस भाव सोते से आली, उस दिन दोशव की चचलता वन-ठन गयी लाज की लाली। अरणाई-सौ अंजी नैन मे, हुए पलक कुछ भारी-भारी, चपल चाल गति हुई अनचल, मन की मौज हुई मतवाली। दिराने लगी नयी - सी दुनिया, दिखने लगा नया - सा जीवन, छिटक उठी मेरे नयो चाँदनो-सी उजियाली पार गये रिमझिम-रिमशिम नेहा वरसा, रिमझिम बरसी रस की बूंद, यो आकण्ठ भर गयी सहसा,- मेरी यह छोटी-सी प्याली । नये भाव उभरे हिय - तल भ, कुछ उलझन - सो मन म आयी। मेरे छोटे-से जीवन म- अली, चली कुछ नयी प्रणाली । हम विपपाया जानम क