पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जा अरे, लौट गा फिर अपने गृह, मेरो कही मान लोचन को झिलमिल के ओझल हो रह, आ बैरी, सुन ले, मत बह, मत बह, अरे हठीले, मेरी सुन ले। तनिक ठहर, म रक जा, झूला तुझे पुलाऊं, अन्तरतर तुझे सुला, श्वास और विश्वासो पलने म तुशको दुलरा, आ जा, सोना, मेरे राजा, आ जा, ओ बैरी, सुन हे मत वह, मत वह छलक-छलक तू, सनिया ठहर, मेरी सुन ले। ? उम आया है तू विन बोले, बिना आहे तू हिप मे डोले साक-झांक. यो देख रहा है- मेरी नयन खिडवियाँ आ बेशरम, गरम जीवन का खाल न तू, त्रित म गुन ले मत बह, मत यह, अरे होले, तनिक ठहर, मेरी सुन ले। खाले? मेरी अकथ कहानी में कण- विलित कर न, अरे तू क्षण-क्षण, गोपनीयता ठान त्रुको निदय, तुझसे आज मृदुल रण, जून न जरासे, अरे झगड मत तनिक रहर, मेरी सुन ले छुपा खेद का भेद, उसे तू खोल न, श्री बेरी सुन ले। हम विषपाली जनम के २१०