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समझ गयो में दिहै मदमधी पनी सश गो नोरयता यह, अत्र सममी, हिय अया दुसता है, जर आती नितिवारी-याली। नये-नये ये पाब्द रमीले, स्फुरित हुए हिय म, ग्गना म, अब तो बहुत मधुर लगती है। मह मद - भरी लाज वी गाली, --- नेह नवेला रग छलकाता गचल पड़ा मेरे आगन म, गया है राहसा बह, जो अब तक या खाली-खाली, यून भर मै वीरानी -सी लगतो हूँ, पर मेरा वसूर ही क्या है? सहज नेह का अलस भाव यह सोते से उड़ा है आली। आँसू के प्रति मत वह, मत वह अरे हठोले, तनिक ठहर, मेरी सुन ले, छुपा खेद का भेद, उसे तू खोल न, ओ बैरी, सुन ल, कण्ठ द्वार पर ही एक, २ तू आगे को न रन भी झुक तू, हम निषावा अनमक ३५६