पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४३५

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उस दिन, किरणे शिशिरातप पो आती थी छन-छनके, मन्द वायु मे नाच रही थी शाखाएं वन - ठनके, माशाओ के पुज कुज में थे सोते - से जागे, सोचा था मैं हिम रख दूंगा खोल तुम्हारे बागे, किन्तु अधर-पुट पर कुछ सहसा शूल गया तारा-शा छर कान पाया यह भायो से भरा हृदय प्याला सा। उस दिन सोचा था कि हृदय के अतल सिंघु को निषिया- आखो से ढरमा दूँगा मैं पूरी होगी विधिया । सोचा था कह दूगा चुपके चुपके में घुछ बतिया । शायद पट जाचे मन चकवे की वियोग की रतिया। पर, मनसूबो की सब सेना हुई पराजित क्षण मे । कौन टिका है अब तक सम्मुख आत्मनिवेदन-रण में? उस दिन असमर्पित फूलो धो नै पखडियो, रानी, भूल-शूल सो साल रही हैं अतर मे अरमानी। पानी-पानी बनकर जो वह सो न भाव सलौने, . वे, होके उत्कण्ठ, हिचकियो के बन गये खिलौने । सजनि, तुम्हारे युग मापोली सहज लाज की लाली- अपना रंग चहा देती है सब पर यह मतवाली। हिस्टिक्ट जेल, गाद्धोपुर १८ दिसम्यर १९३९ ६म विपाया जनम