पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४३८

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अदृष्ट चरण-वन्दना वन्दन कर लूं आज तुम्हारे अडिग अकम्पित उन चरणो मे, जिनको महिमा रही अगोता जन गाहित्यिक अधिकरणो मे । तुम अमात नाग जन सेवक, तुम सैनिक, तुम घोर, बीरवर, तुमने नव सन्देवा श्रवण यो क्षगता दिखलायो साहस कर, चरण तुम्हारे चले अशक्ति, अति सत्वर अनजाने पथ पर, मागव प्रगति हुई प्रतिलक्षित तव चरणो के आचरणो मे, वन्दन कर लें आग तुम्हारे अडिग अफम्पित उन चरणो मे । चरण तुम्हारे ये कि जिन्होने दुगम गैल किये अतिलधित, जिनकी निर्भय अच्युतता ने किये अनेक हृदय निस्पन्दित, जो नवीन निर्दिष्ट मार्ग पर मुदित बड़ हरले निपट अशमित, वे दृढ चरण छिप गये हैं जो सहज विस्मरण - आवरणो मे, यन्दन कर तू आज तुम्हारे अडिग अकम्पित उन चरणो में। वे तव पातश चरण कर गये अभिनव जन यात्रा पथ निर्मित, तुम चे सैनिक जो आशा पर समुद पर गमे प्राण समर्पित, आज तुम्हारे तप-प्रसाद से है भारत जन-गण-हिय हषित, तव शोणित कण अब पुष्पित है नव यलो के अवतरणो मे, यदन कर आज तुम्हारे अडिग अकम्पित उन चरणो में । यो गणेश कुटीर, कानपुर जुलाई १९५४ बम विपपायी जनमक pot