पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४३९

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भरा . माटो मरत-रात के तुमजनगा। m-T7 मे गुम, 11-m गय मोदिन मगर, भरत • गरमें युजर - गण! पार, EिTTE, मा, या भागधौर अपगर,- मग,माया, कि मतमोगल मायाग्यर,- प, मामाया, ता, गिना, मार निरार, गह भय रापति तुम्हारी है माररा यो माटी या धन, गुम ह जा-गण आपण यह तुम्ह है कि देश माटो या शृगार परो तुम, शापाहर है तुम्ह कि अपनी जानी ना भण्डार भरो तुम, युग पहता है कि इस भूमि पा यह दरिद्रता - भार हगे तुम,- म्नायु - तातु - मारगी म हो गह थम युद-वाद्य यो यन पन भरत • गण्ड रे तुम हे जन - गण । एर धाम तुग, एस नाम तुम, एक चा तुम, ग प्राण हे तुम, एर रागमय, या यति गतिमय, सब उदय रे गेम-गान हे तुम, श्रेय प्रेय-साधनापूण तुम, मानवता के नव बिहान है तुम, स्वेदोदा वा अध्य चढ़ापर बरी प्रत का सध्यान्यन्दन, भरत - खण्ड ये तुम हे जन - गण ५विण्डगर प्लेस नयी रिकी १८काबरी १०५५ 1 ४० हम पिपायीमा के