पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४७

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इतनो यह विज्ञान-सम्पदा, इतना यह बल पुद्धि पराक्रम, भस्मसात् होयेगा क्षण मे, त्यागो अपने मन का सम्भ्रम । पहला जा,रे परम तपस्वी, रे अति मानव अरे दिगम्बर । लप विनामा उन्मुख मानवता, कहता जा तू, रे पियम्भर, गह सन्देन - धारण का यह दासध्यान नवल, सनातन,- अरे कदाचित् सुन न सकेंगे निपट अल्प विश्वासो हम गन । विन्तु अरे तू तो कहता जा, देता चल स देश सुहावन, इसी तरह मानयता का मन, शायद हो जाये कुछ पावन । तुम जैसा पथ - दशक पाकर, यह मानवता धन्य हुई है, नर में नारायण की झाको यहा विशेष अनन्य हुई है, जग ने देखा कि हा गुहा का वह मानय पशु गुप्त हुआ है, तुझमे देखा कि यह हिंस-नर जाने किधर विप्त हुआ है, ओ करुणाकर मेरे बापू, जियो गियो, शत थप जियो तुम मानवता के अर्थ, शम्भु है, गरल पियो तुम । गरल पियो तुम । डिस्ट्रिट जेल, उद्याय मिवरबर १९४२ 1 ! पथ-निरीक्षण सुन लो ओ नवीन दीवाने, सुन लो मेरी बात जरा,- अरे, रही है विजय जगत् में सदा बाल से स्वयमरा, जिसो गट्टे मे ताकत, है, है उसकी ही वसुन्धरा, देवर सीस, असीम मिले हैं यही विश्व की परम्परा, विजय और यमुथा ये दोनो वडे वाप यो बेटी है, वापुरपी की नहीं, सदा में बलवाना की पेटी है। हम पिएपायी जनमा १८