पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४९

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आज अग्नि-ताण्ड्य ही दो, ग - स्पट रहराने दो, रजित अग्नि - शिया उटने यो, अम्बर ला हहया दा, निज पसायरोप दुर्गा म विजय ध्वजा फहराने दो, एक बार फिर से जय-जय को विजय गूंज पहगने दो, हारी थयो अस्थियां लेकर मर जाओ वृत्त रारो, पथ जैसा है पंगा ही है निरसी नीयन कॅच रारो। डिस्ट्रिक्ट जैन, बलीया २१ जनवरी १९३४ भैरव नटनागर अरे भयकर, ओशिवशकर । ओ जगतो यो पुण्य गन्ध , आ गावी जीवन भय हर, हर, अरे भयर, ओ शिवशकर । चार वरम सफ अनहद डमरू खूब बजाया, ओ बम् भाले, नाच - सब जगत् देखकर तेरा वह ताण्डव प्रलयकर, अरे भयवर, ओ शिवशर । विस्ट नाच नाची सब दुनिया तेर भयुटि-विलास मात्र से, नारी-जर नाचे, शिा नाचे, नानी युवक युवतिया थर थर, अरे भयकर, नो शिवशकर। रग रग रोग रोम, सब, नाच उठे लोहित शोणितन्मण, अहसार नाचा, यि नाचा, पापित हुआ गिखिल मत-अवर, अरे भयकर, आशिवशकर । ४२० हम विपपाया अनम है