पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४५५

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अरे पापुग्प, ६-देबू मुझको पानी बुझने ये मम प्याग, गिपट - से शानी, वग्ना, मैं हूँ भाग तुषे मा डालूंगी। घन मार हिय को मा हृदय में सागी!" सुग पारव पचन भोर यि मुरम गया पर, चारों के हिय पा बन मुरा गया गया बलिदानोलण्ठा सा मर मिटने के भाव हुए फिर में जिन्दा । फन्दा शिखर पर चढ चाल, घड चक, यक मत, रे अलि बध के सुन्दर जीव, उम कठोर शिखर के ऊपर है मन्दिर फी नीव, बडे - बड़े थे शिलाखण्ड मग रोके पटे अचेत, इन्हे लाध मू, यदि जाना है तुझे मरण के हेत, ऊपर, अगम शिखर के ऊपर, मचा मृत्यु का रास । नीचे, उपत्यका में, है जीवन-पकिल का त्रास ! चढ़ घल, चढ चर, थक मत रे तू बलिदानो के पुज, देम फही न' लुभावे तुझका यह जीवन की कुज मधुर मृत्यु का नृत्य देख तू देने लग जा ताल, अपना सोस पिरोकर कर दे पूरी मा की माल, है जीवन अनित्य, कट जाने दे हू मोहक बध, कर दे पूरा आज मरण का तूं अपना गुप्रय ध । M २६ हम विषपाया जनम के