पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४५६

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१९३०वें वर्ष की समाप्ति पर जाते हो? जाओ, सुखेन जाओ, हंसते जाओ, प्यारे पूर्ण भूत को सुघड जाल में हंस फैसते जाआ, प्यारे, है उनीस मी तोसवे वरस, क्रीडा-काल बीत आया, तुम्हे बुलाने को, मुसकाता, देखो वह अतीत आया, छिन छिन बीत रही हैं आज तुम्हारी क्रीडा की पडियों, सिसक रहो है सन-खन करती काल शृखला की कडियां । भुश याद है वह दिन जब तुम आये थे हंसते मिलते, सस निशीथ वे अपर वाल मे देखा था तुमको सिलते, शरकृशा राबी के तट १ छटा तुम्हारी देखी थी, उस दिन इस जीवन में एक नयी आभा अनुलेखी थी, उस दिन र गा चुके ये दायो पर जो कुछ भी पूँजी थी, हे सुवैप, उस दिन, 'स्वतन्त्र भारत की जै' व्यनि ग्रेजी थी। उस दिन भारत के दिमण्डल मे, गूंजा उद्घोष नया, उस दिन बन ठनकर सुन सुन करती, आयो आशा विजया, मुझे याद है, इस दिन झण्डेके नीचे कुछ गान हुआ, अथवा माते हुए देन यी, जागृति का बुध भान हुआ, वह प्यारा कप्तान जवाहर, उस दिन नाचा फिरा वहा, आशाओ का पुज माद है, उस दिन जना चिरा यहाँ । हम विषपायी जनम ४२७