पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४८४

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बहुत मूलते रहे अभी तक आरा - निराश - हिंडोले मे, वहुत उडे हो, मानव, तुम तो कल्पित उड़नखटोले मे, पर, बोलो, आकादाओ ने तुमको क्या वरदान दिया | हम कहते हैं कि कुछ नही है इच्छाओ के झोले में इतना बल उनमें अवश्य है कि वे कर्म को विकृत करें, इतना वल है कि वे तुम्हारे सन सुकृतोयो अकृत करें उनमे यह बल है कि तुम्हारे हिय की शान्ति त्यरित हर ले, और, तुम्हारे सद्भावों को ये क्षण - भर में अनृत करे । यही साधना साथी, मानव, कि तुम अडिग औ' अटल रहो, प्रतिकूलता पधारे सम्मुख तब भी तुम नित अचल रहो, समझो अन्धु कि आते ही हैं पथ मे आँधीके झोके, क्या कर लेंगे ये बेचारे यदि तुम गन मे सबल रहो। निश्चय ही हम सब मनुजो को शिश्नोदर को च्याधि मिलो, काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को निश्चय हमे उपाधि मिली, फिन्तु मनुज ही को तो सयम रुपो अमित प्रमाद मिला। मानव के ही हिय सर मे तो शतदल चित्त समाघि सिली।। + मनुज-प्रगति इतिहास नह रहा आज ऊध्य भुज होकर पो कौन पा सका है अपने को चिर निन्द्रा में सोकर यो? मानव वा गिर प्रगति चिद यह जागरुकता ही तो है अपनापन पाओ, अपने को अपने हर से सोकर यो। इम रिपपायी जनम के ३१५