पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१३

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माटी भी उजत - ग्रीय हुई नव चेतनता उठी जाग, जीवन - रंग फेला जब हमने खेली प्राणो को रक्त फाग, हो चला हमारे इगित पर जग में नव जीवन का प्रसार, हम जनक प्रलय रण-चण्डी के, हम विद्रोही, हम दुनियार । हो गयो सृजित संगीत कला, हमने जो छेडी नवल तान उन्मुक्त ही गये भाव - विहग जो भरी एक हमने उडान, हमने समुद्र-मथन करके भर दिये जगत मे अतुल रत्न, समृति को चेरी कर लाये अनवरत हमारे में सस्कृति उभरी, लालित्य जगा, सुन पड़ी सभ्यता की पुकार, जन विप्लव-रण-पष्टिका-जनक, बढ़ चले माग पर दुनिवार प्रयत्न। I हा 'अग्ने । नय सुपथा राये 'वा अनल- मन्त्र वह जाग उडे, हम मोह, लोभ, भय, छोह सब त्याग उठे, सर त्याग उठे, प्रास 5२ हम विपापी नामक