पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१४

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हम आज देखते है जगती, यह जगती, यह अपनी जगती,- यह भूमि हमारी विनिर्मिता, शोपिता, परायो - सो लगती। रवि - निर्माताओ के भू पर, वीलो, यह बीमा अन्धकार? क्या निद्रित थे हम अति कोही, हम विद्रोही, हम दुनिवार । वया बन्धकार? हों अन्धकार । याँ अन्धकार ॥ यो अन्धकार ।। है आज सभी दिशि अन्धकार, हैं सभी दिशा के वन्द द्वार, ज्योतिष्पुजो के हम सूट, हम अनल - मन्त्र के छन्द - वार, इस दुदम तम को क्यो न दले? हम सूयकार, हम चन्द्र- कार । आओ, हम सब मिलकर नभ से ले आये रवि-शशि को उतार ।। हम विप्लब - रग-चण्डिका - जनक, हम विद्रोही, हम दुनिवार । चेतन ने जब विद्रोह किया, तव जडता में जीवन आरा, जीवन ने जब विद्रोह लिया तब चमक उठी इचन- चाया, दम विपपापी सनमक