पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१७

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यह जो विकारा, उत्तमण, प्रगति, प्रस्टी जीवन के हिब - तल मे,- वह है केवल विद्रोह छटा जो मिल उठती है पल-पल मे। तय, बोलो, हम मयो सहन करें दुन्ति तिमिर का अनाचार' हम विप्लव - रण - चण्डिया-जनक, हम विद्रोही, हम दुनिवार । करोडो का, बढे - बड़े, हम तण्ड-पण्ड कर चुके गन अतुलित मदमत्त है इतिहासो को याद हमारा भीम प्रहार हयोडो का। आ चुने अभी तक कई - गई घनघोर गरमा जा लखो, हमारे प्रागण में उनले हैं बस कुछ दूह खटे । है इतिहासो को भी दूभर उनी सामाग्यो का विचार, उनके आगे टिक सका कौन, जी है विद्रोही दुनिबार । हमने संस्कृति का सृजन किया, दुपतियों को विध्वस्त किया, बुविचारा के चहते रवि को एक ठोकर देकर अस्त किया। VS हम विपापी जनम के