पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१६

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हम आज देखते है जगती, यह जगती, यह अपनी जगती,- यह भूमि हमारी विनिर्मिता, शोपिता, परायी - सी लगती। रवि - निर्माताओ के भू पर, बोलो, यह फैमा अन्धकार? क्या निद्वित्त थे हम अत्ति कोही, हम विद्रोही, हम दुनिबार । क्या अन्धकार? हाँ अन्धकार । याँ अन्धकार ॥ अन्धकार ।। है आज सभी दिशि अन्धकार, है सभी दिशा के बन्द द्वार, ज्योतिप्पुजो के हम गुष्टा, हम अनल - मन्त्र के छद - यार, इस दुदम तम को क्या न दले? हग सूयकार, हग चन्द्र-कार। आओ, हम सब मिलकर नभ से ले यायै रवि- शशि को उतार हम विष्कव - रण-नण्डिका - जनक, हम विद्रोही, हम दुनियार । चेतन ने जब विद्रोह किमा, सब जटता में जीवन आया, जीवन ने जब विद्रोह किया तर चमक उठी याचन - काया, हम विपपायी जनग क