पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दिक्-काल नये, दिक्-पाल नये, सब ग्वाल नये, राय थाल नये, मिरजेगे ब्रज भूमि नयी, गोपिया नयी, गोपाल नये ॥ क्यो आज अलस भावना जगे, जब आये हम हिय धैय धार हम विप्लव- रण चण्डिका - जनक, हम विद्रोही, हम दुनिवार । ? उन्नत भरने, मानव को नयी सुगति देने, मानवता को करने हम आये हैं नर के हिय मे, नारायणता की युति यह अति पुनीत, यह गुणासोत, शुम क्म हमारे सम्मुख है, तब नीच निराशा यह कैमो? कैसा सम्भ्रम? अव रमा टुख है। तिल-तिल करके यदि प्राण जायँ तब भी क्यो हो हिय म विकार ? हम विप्लव-रण-नाण्डिवा-जनका, हम विद्रोही, हम दुनिवार । यह कार, लोह लेयनो लिये, लिखता जाता है युग पुगण, हग सर की वृत्ति विकृतिया का उमको रहता है सूय ध्यान, ५८६ हम पिपायी गनमक